माँ-बाप के लिए बेटी अहम है !!
कभी बहु कभी माँ स्वभाव उसका नरम है ।
क्यू बेटे पर ही है ज़िम्मेवारी मात पिता की ?
क्या बेटी बस है जागीर ससुराल की ?
क्यूँ छुड़ा लिया उनसे दामन शादी के बाद ?
क्या सिर्फ़ लिया ससुराल का उसने आशीर्वाद ।
बेटी क्यूँ भूल गयी लाड़ माँ का,
जिसने सिखाया पैरो पर चलना।
बेटी क्यूँ भूल गयी स्नेह पिता का,
जिसने बनाया था अस्तित्व उसका ।
क्यूँ भूल गयी अपनी नयी दुनिया में व्यस्त,
कर के अपने मात पिता की उम्मीदों को ध्वस्त ।
मात पिता के लिए लड़ी वो दुनिया से,
क्यूँकि जुड़े हैं तार दिल से दिल के ।
ना बांधना उसे उन ज़ंजीरों में,
ना टूट जाए बाँध सब्रों के ।
निभाना है फ़र्ज़ दोनो तरफ़ का ही,
चुकाना है क़र्ज़ जनम दाता का भी ।
पहल करता वही जिसको फ़िक्र है,
दूसरों के सहारे छोड़ना कायरों का ज़िक्र है ।
ऊपहास करना तो अपना पल्ला झाड़ना है ,
मात पिता के दर्द जो बाँटे वही दयालु तगड़ा है ।
नए रिश्ते जुड़ने से पुराने भुलाए नहीं जाते ,
सेवा की भावना हो तो बहाने बनाये नहीं जाते ।
किसी के घर की बहु हूँ अब तो, कहकर
जनम दाता के क़र्ज़ टाले नहीं जाते ।
छोड़ देना लड़के पर ही अपनी ओर की भी ज़िम्मेवारी,
आजकल स्वार्थी स्वभाव हैं दिखाए जाते ।
ख़ुद पर करना है गर्व, कहकर
मैं भी हूँ सन्तान तुम्हारी ।

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